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शायरी

  • Writer: Gopendra Sharma
    Gopendra Sharma
  • Jun 3, 2020
  • 1 min read

मेरी आखों का दर्द नहीं देखा तुमने

केवल चेहरे पर हंसी नजर आती है

साहब वो मुखौटा है

जो मेरे दर्द को छुपाती है


हक तुझे दे ही चुका हूं

अब कर ही क्या सकता हूं

बर्बाद हो जाऊंगा तुझसे बिछुड़कर

इस डर से जुदा भी तो नहीं हो सकता हूं


जिंदगी में दो चीजों को हमेशा याद रखिए

एक हां जी हां जी कहिए

दूसरी, जहां आपकी आवश्यकता नहीं

वहां नहीं बैठिए


जब तू सामने दिख जाती है मेरी तो आखें ही बंद हो जाती है मुंडेर पर खड़े होकर हमें रोजाना जलती है

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